त्रिवेंद्र सरकार वैष्णोदेवी और तिरुपति बालाजी मंदिर की तर्ज पर चारधाम श्राइन बोर्ड बनाकर यात्रा संचालन करेगी। आज सरकार ने चारधाम श्राइन बोर...
चारधाम सहित प्रसिद्ध 51 मंदिरों की देख रेख के लिये टीएसआर सरकार श्राइन बोर्ड बनाने जा रही है। सरकार ने सोमवार को चारधाम श्राइन बोर्ड विधेयक
सदन में पेश कर दिया। लेकिन टीएसआर सरकार के फैसले का चौतरफा विरोध भी शुरू हो गया है। विपक्षी कांग्रेस सरकार के फैसले को सनातन धर्म से खिलवाड़ और तीर्थ पुरोहित समाज के साथ कुठाराघात करार दे रही है। कांग्रेस ने आरोप लगाया कि सदन में विधेयक लाने से पहले कार्य मंत्रणा समिति में जानकारी नहीं दी गयी। केदारनाथ विधायक मनोज रावत आरोप लगाया कि सरकार अपनी मनमर्जी पर उतारू है। सरकार के पास बहुमत है इसलिए नियमो को ताक पर रखा जा रहा है।
श्राइन बोर्ड को सरकार क्रांतिकारी कदम करार दे रही है। सरकार का तर्क है कि श्राइन बोर्ड बनने के बाद ही वैष्णोदेवी मंदिर का विकास हुआ और आज सालाना लाखों श्रद्धालु सुविधाओं के साथ दर्शन कर रहे। सरकार दक्षिण भारत के तिरुपति बालाजी मंदिर सहित तमाम मंदिरों में श्राइन बोर्ड व्यवस्था की ख़ूबियाँ भी गिना रही है। सरकार का तर्ज है कि श्राइन बोर्ड बनने से न केवल नये रोजगार पैदा होंगे बल्कि यात्रा व्यवस्था सुधरेगी और मंदिरों के हालात बेहतर होंगे। हर साल बड़ी तादाद में बढते श्रद्धालुओं को देखकर भी सरकार चारधाम और प्रसिद्ध मंदिरों की देखरेख अपने हाथ में लेना चाह रही। सत्तापक्ष विपक्ष के वार पर पलटवार तो कर ही रहा है, तीर्थ पुरोहित समाज के हक हकूक हर हाल में सुरक्षित रहने का वादा भी कर रहा है।
बद्रीनाथ विधायक महेंद्र भट्ट ने श्राइन बोर्ड का समर्थन करते हुए कहा कि इससे पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा।
दरअसल चारधाम श्राइन बोर्ड के अध्यक्ष मुख्यमंत्री होंगे और संस्कृति मंत्री से लेकर तीन सांसद और छह विधायक शामिल होंगे। तीर्थ पुरोहित समाज के तीन प्रतिनिधि भी इसका हिस्सा होंगे और सीनियर आईएएस सीईओ के तौर पर बोर्ड का ज़िम्मा संभालेगा। बोर्ड में तमाम अहम ज़िम्मेदारियाँ हिन्दू धर्मावलंबियों को ही दी जाएँगी। बदरीनाथ- केदरानाथ मंदिर समिति सहित तमाम समितियाँ और परिषद भी इसके दायरे में आ जाएँगी। कहने को 2004 में तिवारी सरकार ने चारधाम विकास परिषद बनायी लेकिन बिना एक्ट परिषद सफ़ेद हाथी ही साबित हुई। सवाल है कि जब सरकार इसे अपना क्रांतिकारी कदम करार दे रही है और श्राइन बोर्ड के हजार फ़ायदे गिना रही तब क्या तीर्थ पुरोहित समाज से खुलकर मंत्रणा करना मुनासिब नहीं होता? आखिर मंदिरों की बेहतर व्यवस्था और रख रखाव के साथ साथ सदियों से पूजा पाठ के जरिये सेवा करते समाज की चिन्ता करना भी तो सरकार के ही ज़िम्मे है। बहरहाल श्राइनबोर्ड पर सियासी संग्राम जल्दी थमने वाला नही् है। लेकिन सरकार ने विधानसभा में विधेयक लाकर अपनी मंशा जाहिर कर दी है। अब विपक्ष और तीर्थ पुरोहित समाज विरोध में लड़ाई को कितना आगे लेकर जाता है ये देखना होगा?