समाजसेवी विकेश सिंह नेगी ने देहरादून में एक प्रेसवार्ता कर आबकारी विभाग में फैले भ्रष्टाचार को लेकर खुलासा किया। विकेश सिंह नेगी लंबे समय स...
समाजसेवी विकेश सिंह नेगी ने देहरादून में एक प्रेसवार्ता कर आबकारी विभाग में फैले भ्रष्टाचार को लेकर खुलासा किया। विकेश सिंह नेगी लंबे समय से आबकारी विभाग में फैले भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज बुलंद किये हएु हैं। आबकारी विभाग, आयुक्त आॅफिस, मुख्यमंत्री दरबार से लेकर नैनीताल हाईकोर्ट तक भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने का काम कर रहे हैं। आबकारी विभाग में तैनात इंस्पेक्टर शुजआत हुसैन की नौकरी को फर्जी बताते हुए विकेश सिंह नेगी ने नैनीताल हाईकोर्ट में क्यू वारटों रिट दाखिल कर चुनौती दी हुई है।
समाजसेवी विकेश सिंह नेगी कहते हैं कि शराब महकमे में अफसर सरकारी रसूख और दौलत पर भरपूर मौज कर रहे। उनको न तो आला अफसरों का डर है न ही कोर्ट का। आबकारी विभाग में तैनात इंस्पेक्टर शुजआत हुसैन की नौकरी को चुनौती मामले में सरकार की तरफ से नैनीताल हाईकोर्ट में जवाब दाखिल कर दिया गया है। देहरादून में तैनात इंस्पेक्टर शुजआत हुसैन कानून नौकरी में हैं ही नहीं। सरकार ने खुद हाईकोर्ट में इस बात को स्वीकार कर लिया है। इसके बावजूद हुसैन को सेवा में अभी तक कैसे रखा है, इसका जवाब सरकार के पास नहीं है। उनके साथ ही उधमसिंह नगर में तैनात इंस्पेक्टर राबिया का मामला भी शुजआत की तरह का ही है।
उत्तराखंड और बुंदेलखंड में थे ही नहीं उर्दू अनुवादकों के पद
इस मामले में देहरादून के समाजसेवी विकेश सिंह नेगी का कहना है कि शुजआत और राहिबा के पद बुंदेलखंड और उत्तराखंड में थे ही नहीं। तकनीकी और वैधानिक तौर पर दोनों सेवा में होने नहीं चाहिए। विकेश ने इसलिए शुजआत को पथरिया पीर मामले में सस्पेंड करने पर भी ये कहते हुए अंगुली उठाई थी कि जो सेवा में ही न हो, उसको सस्पैंड कैसे किया जा सकता है? शुजआत उर्दू अनुवादक से कैसे इंस्पेक्टर बन गए और कैसे सालों तक देहरादून सर्किल के इंस्पेक्टर बने रहे, यह हैरान करने वाली बात है।
विकेश कहते है किं उत्तर प्रदेश में सन 1995 से ही इस फर्जीबाड़े की शुरूआत हुई। विकेश के मुताबिक शुजआत हुसैन, और राहिबा इकबाल को 1995 में फर्जी तरीके से यूपी की मुलायम सरकार ने उर्दू अनुवादक और कनिष्ठ लिपिक पद पर सिर्फ भरण पोषण के लिए रखा था। उस समय भी इन दोनों के नियुक्ति पत्रों में साफ लिखा था कि यह नियुक्ति सिर्फ 28-2-1996 को स्वतः ही समाप्त हो जायेगी। फिर दोनों कैसे 24 साल बाद भी सरकारी सेवा में हैं? साथ ही इंस्पेक्टर भी कैसे बन गए?
बिजिलेंश से भी की थी शिकायत
समाजसेवी विकेश कहते हैं कि उन्होंने इस मामले की शिकायत बिजेंलेस विभाग से भी की थी। लेकिन बिजेंलेस ने अपनी जांच में कहा था कि इनकी नौकरी सही है। और इनकी संपत्ती का विवरण भी ठीक है। इसके मुताबिक बिजिलेंस ने जांच के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति की है।
सूचना के अधिकार के तहत आबाकारी विभाग का जवाब
विकेश सिंह नेगी कहते हैं कि जब उन्होंने सूचना के अधिकार के तहत इस पूरे मामले पर जानकारी मांगी तो विभाग की तरफ से काफी हैरान करने वाला जवाब आया। विभाग ने कहा कि राज्य गठन के पशचात आबकारी विभाग उत्तराखंड में जिन नियमों/विधियों/आदेश के तहत उर्दू अनुवादकों के पद सर्जित किये जाने के सबंध में कोई भी सूचना धारित नहीं है। विकेश कहते हैं कि जब उत्तराखं डमें यह पद थे ही नहीं और आबकारी विभाग के पास कोई सूचना थी ही नहीं तो फिर इन लोगों को नियुक्ति किस नियम के तहत दी गई। नियुक्ति देने वालों और अब तक इनको संरक्षण देने वालों के खिलाफ भी कार्रवाही होनी चाहिए।
आबकारी आयुक्त सुशील कुमार का मीडिया में आया बयान
विकेश कहते हैं कि हाल ही में आबकारी आयुक्त सुशील कुमार का मीडिया में एक बयान आया है। अपने बयान में आबकारी आयुक्त सुशील कुमार ने भी साफ किया है कि हाईकोर्ट में सरकार ने जवाब दाखिल करके बता दिया है कि शुजआत को सिर्फ एक साल के लिए काम पर रखा गया था। यूपी सरकार ने ऐसी नौकरी का कोई गजट नोटिफिकेशन भी नहीं निकाला था। साथ ही बुंदेलखंड और उत्तराखंड (तब गढ़वाल-कुमायूं) के लिए ये तैनाती भी नहीं थी। सुशील कुमार के अनुसार हाईकोर्ट के आदेश के बाद शुजआत की बर्खास्तगी पर कार्रवाई होगी।
विकेश कहते हैं कि जो व्यक्ति नौकरी पर ही नहीं है उसकी बर्खास्तगी का तो मामला ही नहीं बनता है। ऐसे व्यक्ति को तो स्वतः ही विभाग से रिमूब कर देना चाहिए था। अब भी विभाग को कोर्ट के आदेश का इंतजार है। विकेश का कहना है कि सरकार का ये तर्क इसलिए अजीब समझा जा रहा है कि जब उसने खुद मान लिया कि शुजआत सेवा में है ही नहीं, तो फिर हाईकोर्ट के आदेश का इंतजार क्यों किया जा रहा है। शुजआत पर कार्रवाई होती है तो राहिबा हुसैन भी स्वतः हटा दी जाएगी।
मुख्यमंत्री की ईमानदार छवि को धूमिल कर रहे हैं कुछ अफसर
हाईकोर्ट में पूरे मामले की लड़ाई लड़ रहे विकेश सिंह नेगी कहते हैं कि इस पूरे मामले में कुछ लोग मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत की ईमानदार छवि को धूमिल करने में लगे हुए हैं। यही नहीं मिलीभगत कर मुख्यमंत्री के जीरो टालरेंस को भी चुनौती दे रहे हैं। विकेश कहते हैं कि कहीं ऐसा तो नहीं कुछ नौकरशाह ईमानदार मुख्यमंत्री को गुमराह कर रहे हों। अब देखना होगा इन मामलों पर सरकार कब तक वाजिब कार्रवाई कर जीरो टालरेंस का संदेश देती है।
रिकवरी के साथ हो संपत्ति की जांच
विकेश कहते हैं कि यह तो सिर्फ आबकारी विभाग का मामला है। हो सकता है कई अन्य विभागों में भी उर्दू अनुवादकों , सह कनिष्ठ लिपिक की तर्ज पर लोगों ने नियुक्तियां पाई हों। विकेश ने कहा कि माननीय मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत को सभी विभागों में ऐसी जांच करानी चाहिए। क्योंकि इन नियुक्तियों का गजट नौटिफिकेशन हुआ ही नहीं यह इलाहबाद हाईकोर्ट में उत्तर प्रदेश सरकार ने 1995 में कहा था। अगर ऐसा है तो फर्जी नौकरी कर सरकार को जो अब तक आर्थिक नुकसान पहुंचाया गया है उसकी रिकवरी के साथ ही इनकी संपत्ति की भी जांच होनी चाहिए।
समाजसेवी विकेश सिंह नेगी कहते हैं कि शराब महकमे में अफसर सरकारी रसूख और दौलत पर भरपूर मौज कर रहे। उनको न तो आला अफसरों का डर है न ही कोर्ट का। आबकारी विभाग में तैनात इंस्पेक्टर शुजआत हुसैन की नौकरी को चुनौती मामले में सरकार की तरफ से नैनीताल हाईकोर्ट में जवाब दाखिल कर दिया गया है। देहरादून में तैनात इंस्पेक्टर शुजआत हुसैन कानून नौकरी में हैं ही नहीं। सरकार ने खुद हाईकोर्ट में इस बात को स्वीकार कर लिया है। इसके बावजूद हुसैन को सेवा में अभी तक कैसे रखा है, इसका जवाब सरकार के पास नहीं है। उनके साथ ही उधमसिंह नगर में तैनात इंस्पेक्टर राबिया का मामला भी शुजआत की तरह का ही है।
उत्तराखंड और बुंदेलखंड में थे ही नहीं उर्दू अनुवादकों के पद
इस मामले में देहरादून के समाजसेवी विकेश सिंह नेगी का कहना है कि शुजआत और राहिबा के पद बुंदेलखंड और उत्तराखंड में थे ही नहीं। तकनीकी और वैधानिक तौर पर दोनों सेवा में होने नहीं चाहिए। विकेश ने इसलिए शुजआत को पथरिया पीर मामले में सस्पेंड करने पर भी ये कहते हुए अंगुली उठाई थी कि जो सेवा में ही न हो, उसको सस्पैंड कैसे किया जा सकता है? शुजआत उर्दू अनुवादक से कैसे इंस्पेक्टर बन गए और कैसे सालों तक देहरादून सर्किल के इंस्पेक्टर बने रहे, यह हैरान करने वाली बात है।
विकेश कहते है किं उत्तर प्रदेश में सन 1995 से ही इस फर्जीबाड़े की शुरूआत हुई। विकेश के मुताबिक शुजआत हुसैन, और राहिबा इकबाल को 1995 में फर्जी तरीके से यूपी की मुलायम सरकार ने उर्दू अनुवादक और कनिष्ठ लिपिक पद पर सिर्फ भरण पोषण के लिए रखा था। उस समय भी इन दोनों के नियुक्ति पत्रों में साफ लिखा था कि यह नियुक्ति सिर्फ 28-2-1996 को स्वतः ही समाप्त हो जायेगी। फिर दोनों कैसे 24 साल बाद भी सरकारी सेवा में हैं? साथ ही इंस्पेक्टर भी कैसे बन गए?
बिजिलेंश से भी की थी शिकायत
समाजसेवी विकेश कहते हैं कि उन्होंने इस मामले की शिकायत बिजेंलेस विभाग से भी की थी। लेकिन बिजेंलेस ने अपनी जांच में कहा था कि इनकी नौकरी सही है। और इनकी संपत्ती का विवरण भी ठीक है। इसके मुताबिक बिजिलेंस ने जांच के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति की है।
सूचना के अधिकार के तहत आबाकारी विभाग का जवाब
विकेश सिंह नेगी कहते हैं कि जब उन्होंने सूचना के अधिकार के तहत इस पूरे मामले पर जानकारी मांगी तो विभाग की तरफ से काफी हैरान करने वाला जवाब आया। विभाग ने कहा कि राज्य गठन के पशचात आबकारी विभाग उत्तराखंड में जिन नियमों/विधियों/आदेश के तहत उर्दू अनुवादकों के पद सर्जित किये जाने के सबंध में कोई भी सूचना धारित नहीं है। विकेश कहते हैं कि जब उत्तराखं डमें यह पद थे ही नहीं और आबकारी विभाग के पास कोई सूचना थी ही नहीं तो फिर इन लोगों को नियुक्ति किस नियम के तहत दी गई। नियुक्ति देने वालों और अब तक इनको संरक्षण देने वालों के खिलाफ भी कार्रवाही होनी चाहिए।
आबकारी आयुक्त सुशील कुमार का मीडिया में आया बयान
विकेश कहते हैं कि हाल ही में आबकारी आयुक्त सुशील कुमार का मीडिया में एक बयान आया है। अपने बयान में आबकारी आयुक्त सुशील कुमार ने भी साफ किया है कि हाईकोर्ट में सरकार ने जवाब दाखिल करके बता दिया है कि शुजआत को सिर्फ एक साल के लिए काम पर रखा गया था। यूपी सरकार ने ऐसी नौकरी का कोई गजट नोटिफिकेशन भी नहीं निकाला था। साथ ही बुंदेलखंड और उत्तराखंड (तब गढ़वाल-कुमायूं) के लिए ये तैनाती भी नहीं थी। सुशील कुमार के अनुसार हाईकोर्ट के आदेश के बाद शुजआत की बर्खास्तगी पर कार्रवाई होगी।
विकेश कहते हैं कि जो व्यक्ति नौकरी पर ही नहीं है उसकी बर्खास्तगी का तो मामला ही नहीं बनता है। ऐसे व्यक्ति को तो स्वतः ही विभाग से रिमूब कर देना चाहिए था। अब भी विभाग को कोर्ट के आदेश का इंतजार है। विकेश का कहना है कि सरकार का ये तर्क इसलिए अजीब समझा जा रहा है कि जब उसने खुद मान लिया कि शुजआत सेवा में है ही नहीं, तो फिर हाईकोर्ट के आदेश का इंतजार क्यों किया जा रहा है। शुजआत पर कार्रवाई होती है तो राहिबा हुसैन भी स्वतः हटा दी जाएगी।
मुख्यमंत्री की ईमानदार छवि को धूमिल कर रहे हैं कुछ अफसर
हाईकोर्ट में पूरे मामले की लड़ाई लड़ रहे विकेश सिंह नेगी कहते हैं कि इस पूरे मामले में कुछ लोग मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत की ईमानदार छवि को धूमिल करने में लगे हुए हैं। यही नहीं मिलीभगत कर मुख्यमंत्री के जीरो टालरेंस को भी चुनौती दे रहे हैं। विकेश कहते हैं कि कहीं ऐसा तो नहीं कुछ नौकरशाह ईमानदार मुख्यमंत्री को गुमराह कर रहे हों। अब देखना होगा इन मामलों पर सरकार कब तक वाजिब कार्रवाई कर जीरो टालरेंस का संदेश देती है।
रिकवरी के साथ हो संपत्ति की जांच
विकेश कहते हैं कि यह तो सिर्फ आबकारी विभाग का मामला है। हो सकता है कई अन्य विभागों में भी उर्दू अनुवादकों , सह कनिष्ठ लिपिक की तर्ज पर लोगों ने नियुक्तियां पाई हों। विकेश ने कहा कि माननीय मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत को सभी विभागों में ऐसी जांच करानी चाहिए। क्योंकि इन नियुक्तियों का गजट नौटिफिकेशन हुआ ही नहीं यह इलाहबाद हाईकोर्ट में उत्तर प्रदेश सरकार ने 1995 में कहा था। अगर ऐसा है तो फर्जी नौकरी कर सरकार को जो अब तक आर्थिक नुकसान पहुंचाया गया है उसकी रिकवरी के साथ ही इनकी संपत्ति की भी जांच होनी चाहिए।