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उत्तराखंड नवनिर्माण सेना प्रतिनिधिमंडल ने दून स्कूल पहुँच निदेशक मंडल को मांग पत्र प्रेषित किया

दून स्कूल में हिंदी प्रवेश परीक्षा से हटाए जाने एवं संस्कृत भाषा को वैकल्पिक बनाये जाने के परिपेक्ष उत्तराखंड नवनिर्माण सेना प्रतिनिधिमंडल न...

दून स्कूल में हिंदी प्रवेश परीक्षा से हटाए जाने एवं संस्कृत भाषा को वैकल्पिक बनाये जाने के परिपेक्ष उत्तराखंड नवनिर्माण सेना प्रतिनिधिमंडल ने दून स्कूल पहुँच निदेशक मंडल को मांग पत्र प्रेषित किया। इसमें कहा गया कि किसी भी राष्ट्र अथवा राज्य की भाषा केवल संवाद करने का माध्यम ही  नहीं अपितु समस्त संस्कृति , इतिहास तथा साहित्य को समझने का माध्यम भी है I हाल  में देहरादून स्थित देश के सर्वश्रेष्ठ स्कूलों में एक दून स्कूल द्वारा राष्ट्र भाषा हिंदी तथा देव भाषा संस्कृत को वैकल्पिक  बना दिया गया I जिसके परिप्रेक्ष  निम्न बिंदु हैं I


1) 3 वर्ष पूर्व दून स्कूल के प्रवेश परीक्षा से राष्ट्र भाषा हिंदी को हटाया गया। ये दुर्भग्यपूर्ण है कि जिस विद्यालय में देश के बड़ी राजनीतिक तथा अन्य क्षेत्रों से जुड़े हस्तियों के बच्चे शिक्षा ले रहे हैI कई पूर्व विधार्थी देश के नीति निर्धारण के कार्यों में लगे हों , इस तरह संस्थान द्वारा राष्ट्र भाषा हिंदी को कमजोर करने का प्रयास क्यों एवं किन परिस्थिओं में लिया गया , ये जानना अत्यंत आवश्यक I


2) देवभूमि तथा भारत अपनी संस्कृति, परंपराओं तथा  इतिहास में कितने ही पौराणिक ग्रन्थों को संजोय हुये है। देवभाषा संस्कृत भाषा ही नहीं अपितु भारत की संस्कृति तथा काव्यों की आत्मा है। इन हालात में आजादी से पूर्व चली रही व्यवस्थाओं में विद्यालय पाठ्यक्रम में देव भाषा को वैकल्पिक करने का निर्णय संस्कृति को पहचान तथा सशक्तिकरण पर कुठाराघात है।


3) 8 से 9 वर्ष पूर्व तक हिंदी पाठ्यक्रम में गढ़वाली तथा कुमाऊँनी साहित्य भी पाठ्यक्रम का हिस्सा रहे। उन्हें हटाया जाना स्कूल की  देवभूमि के प्रति सोच तथा दृष्टिकोण पर प्रश्न है।


4) केंद्र तथा राज्य सरकार देश तथा देवभूमि को विश्व गुरु कब रूप में स्थापित करने पर संवाद करते है। प्रश्न यही क्या दून स्कूल प्रसाशन को देश में कोई योग्य व्यक्ति नजर नहीं आता जो साल दर साल स्कूल में हेडमास्टर के पद पर बाहरी देश के व्यक्ति की नियुक्ति की जाती है,जोकि देश या देवभूमि की संस्कृति तथा परंपराओं से पूर्णतः अनिभिज्ञ होता है।


उत्तराखंड नवनिर्माण सेना किसी अन्य भाषा को विरोधी नहीं है। भारत की संस्कृति मैं में नहीं हम में समाहित है। किंतु राष्ट्र भाषा हिंदी तथा देवनागरी संस्कृत को समाप्त कर अन्य भाषाओं का विकास किसी भी स्तर पर स्वीकार नहीं है। संगठन स्कूल प्रशासन से मांग करता है कि हिंदी भाषा को प्रवेश परीक्षा को सम्मलित किया जाय तथा गढ़वाली एवम कुमाऊँनी साहित्य को समाहित कर विद्यार्थियों को पढ़ाया जाय। देव भाषा संस्कृत को वैकल्पिक के स्थान पर नियमित पाठक्रम में सम्मलित कर संस्कृति को सम्मान प्रदान करें। इस मौके पर राजेश चमोली, बिलास गौड़, सुशील कुमार, आदर्श कुमार, दीपक गैरोला, रमा चौहान, आशीष नोटियाल, चतुर सिंह,पंकज रघुवंशी, विनायक मिश्रा, हिमांशु घिल्डियाल इत्यादि उपस्थित रहे।