बचपन , जब हम दुनिया के झमेलो से दूर अपनी मस्ती में मस्त रहते हैं। बचपन ही एक ऐसी उम्र होती है , जब बगैर किसी तनाव के मस्ती से जिंदगी का मजा...
बचपन , जब हम दुनिया के झमेलो से दूर अपनी मस्ती में मस्त रहते हैं। बचपन ही एक ऐसी उम्र होती है , जब बगैर किसी तनाव के मस्ती से जिंदगी का मजा लिया जाता है। खिलती हंसी, मुस्कुराहट, शरारत , ज़िद यह सब बचपन की पहचान है। लेकिन वर्तमान में बच्चों का वह बैखौफ बचपन कहीं खो सा गया है। आज इन बच्चों के चेहरों से मुस्कुराहट गायब है ,चेहरे पर उदासी व तनाव सा छाया रहता है। कंधों पर भारी बस्ते टांग कर छोटी सी उम्र में ही प्रतिस्पर्धा की दौड़ में शामिल कर दिया जाता है। व भविष्य की कश्मकश में बचपन कहीं खो सा गया है। मोबाइल वीडियो गेम ने बच्चों के स्वभाव को और अधिक उग्र बना दिया है , साथ ही चिढ़चिढ़ापन वा गुस्सैल परवर्ती अधिक पाई जा रही है । बाहर की हवा दोस्तों के साथ मौज मस्ती क्या होती है, उनको पता ही नहीं होता पढ़ाई लिखाई अपनी जगह है , आज के दौर में इसकी अहमियत को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता माता-पिता को अपने बच्चों के लिए समय निकालना चाहिए और उन्हें बाहरी खेलों में व्यस्त रखना चाहिए ताकि वह अपने जीवन का लुफ्त उठा पाएं। डॉक्टर भी मानते हैं कि आजकल बच्चों में वीडियो गेम और मोबाइल पर गेम खेलने से ज्यादा उपयोग करने से बच्चों के दिलो दिमाग पर बहुत खराब असर पड़ता है, जिससे उनकी पूरी सोच प्रभावित होती है, और वह अनजाने में ही हिंसा और अपराध को सामान्य मानने लगते हैं।
जिस उम्र में खेलने कूदने व पढ़ाई करने के अलावा कुछ सूझता नहीं है ,और आज उसी उम्र में बच्चे रेप जैसे कि संगीन अपराध कर रहे हैं ।जो बेहद ही शर्मनाक है, आधुनिक युग की गति इतनी तेजी से हमारे जीवन में रफ्तार दे रही है , उतनी ही तेजी से अनैतिकता बढ़ रही है बचपन समाप्त हो गया है , नए उपकरणों ने इंसान को जितना सरल व सहूलियतपूण बनाया है इतना ही मानव रिश्तो को अपाहिज कर दिया है।
तोहिष भटट् देहरादून।