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सरकार के क्वारेन्टीन सेंटर के बदइंतजामी की खुली पोल

धनुष से निकला बान और तीर से निकला कमान कभी वापस नही आता निशाना अगर सटीक हो तो जीत मिलती है और चूक जाए तो परिणाम घातक हो सकते है कुछ ऐसी ही ...

धनुष से निकला बान और तीर से निकला कमान कभी वापस नही आता निशाना अगर सटीक हो तो जीत मिलती है और चूक जाए तो परिणाम घातक हो सकते है कुछ ऐसी ही स्तिथि त्रिवेंद्र सरकार की भी है जल्दबाजी में सरकार ने प्रवासियों को वापस राज्य में लाने का फैसला तो ले लिया लेकिन प्रवासियों की उत्तराखंड में वापसी त्रिवेंद्र सरकार के गले की फांस बनती हुई दिखाई दे रही है आलम यह कि प्रवासियों की वापसी से पहले जहा एक्का दुक्का मरीजो में ही कोरोना की पुष्टि हो रही थी तो हुई वापसी में कोरोना के ग्राफ का आंकड़ा दोहरी गति से बढ़ा दिया है मरीजो की 400 हुई संख्या ने त्रिवेंद्र सरकार की चिंता की लकीरें बढ़ा दी है  दुरस्त इलाको में भी कोरोना से जहा एक तरफ स्वास्थ्य विभाग में हड़कंप है तो वही दूसरी तरफ आम जन मानस को भी बढ़ते मामलों से कोरोना का डर और सताने लगा है ।।


प्रवासियो की वापसी ने उत्तराखंड में थमे कोरोना ग्राफ में मानो पंख लगा दिए हो हर दिन बढ़ते मामलों से सरकार के माथे पर भी चिंता की लकीरें साफ तौर पर देखी जा सकती है सरकार ने रिवर्स पलायन तो शुरू करवा दिया लेकिन क़वारेन्टीन सेंटर्स में हो रही मौते सरकार पर ही सवाल खड़े कर रही है भले ही सरकार के नुमाइंदे दावे कर रहे हो कि सारी व्यवस्थाएं चाक चौबंद है लेकिन क़वारेन्टीन सेंटर्स में हो रही मौते सरकार की हवा हवाई व्यवस्थाओं की पोल खोल रही है बता रही है उत्तराखंड की वह तस्वीर शायद जिसको सरकार मानने को तैयार नही है हद की बात है साहब नैनीताल में एक छोटी बच्ची को क़वारेन्टीन सेंटर में सांप काट लेता है और त्रिवेंद्र सरकार अपनी व्यवस्थाओं के राजधानी में ढोल पिटती है तो सवाल उठने भी लाजमी है कि क्या सरकार की व्यवस्थाएं बस राजधानी के लिए है ड़ी एम आशीष श्रीवास्तव लगातार बताते है कि लोगो को अच्छी सुविधाएं देने की पुरी कोशिशें की जा रही है अब भाई राजधानी में सुविधाएं हो भी क्यों न शासन प्रशासन ने तो बैठना यही है लेकिन उन दुरुस्त इलाको का क्या जहा सरकार ने सारा जिम्मा उन प्रधानों पर छोड़ दिया है क्या दुरुस्त इलाको में लोगो को अच्छी व्यवस्थाएं नही चाहिए ।।


जब से कोरोना काल में प्रवासियों के लौटने का सिलसिला शुरू हुआ है, तब से ही क्वारंटीन सेंटरों में खामियों की खबरों ने हलचल मचा दी है आलम यह है कि संक्रमित मरीजो का आंकड़ा 400 से पर हो  चला है तो 
लोगों की मौत की खबरों ने सरकार के हवा-हवाई दावों की हकीकत को सामने रख दिया है 
अभी  तो राज्य में डेढ़ लाख से अधिक लोग ही वापस आए है और कोरोना के बढ़ते ग्राफ और सरकार की बदइंतजामी देखकर तो लगता है मानो सरकार के लिए बाकी प्रवासियों को वापस लाना टेडी खीर साबित हो सकता है हालांकि जितने भी लोग वापस लौट रहे हैं, उनके लिए सरकार बार-बार ये बात कहती दिखाई दे रही है कि उनके पास पूरी व्यवस्थाएं हैं, लेकिन अगर व्यवस्थाएं होती तो शायद एक  4 साल की मासूम को क्वारंटीन सेंटर में सांप नहीं डसता और शायद वो आज जिंदा होती ।।


क्वारन्टीन सेंटर्स में अभी तक  5 मौतें  हो चुकी है जिसमे तीन पौड़ी  1 बागेश्वर से  और एक मासूम बच्ची  की  मौत तो नैनीताल में सांप के काटने से हुई है  क़वारेन्टीन सेंटर्स में मौतों के बढ़ते आकड़ो ने  सरकार के इंतजामो की पोल खोल दी है एक तरफ सरकार व्यवस्थाओं के अभाव में इतनी मौते होने के बावजूद भी अपनी वाह वाही का ढोल पीट रही है तो दूसरी तरफ कोरोना के बढ़ते आंकड़े और मौतों ने उत्तराखंड में सियासी भूचाल भी ला दिया है विपक्ष ने भी सरकार को घेरना शुरू कर दिया है उनके आरोप है कि सरकार इस मुश्किल घड़ी में सरकार को विपक्ष को साथ लेकर चलना चाहिए लेकिन सरकार अपनी जिद पर अडिग है ऐसे में जिस तरफ से कोरोना का ग्राफ बढ़ रहा है विपक्ष का आरोप है कि यह इंतजाम इस बढ़ते ग्राफ के लिए नाकाफी है।।