'सम्मेलन में हुए विचार-विमर्श से लोकतंत्र के समक्ष उपस्थित चुनौतियों का सामना करने, संसदीय और विधायी काम-काज को बेहतर बनाने में मदद मिले...
'सम्मेलन में हुए विचार-विमर्श से लोकतंत्र के समक्ष उपस्थित चुनौतियों का सामना करने, संसदीय और विधायी काम-काज को बेहतर बनाने में मदद मिलेगी': लोक सभा अध्यक्ष
देहरादून, 19 दिसम्बर, 2019 : भारत के विधायी निकायों के पीठासीन अधिकारियों का सम्मेलन, जिसका उदघाटन 18 दिसम्बर 2019 को देहरादून में हुआ था, आज सम्पन्न हो गया। इस सम्मेलन में 24 विधानमंडलों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। सम्मेलन में विधायी निकायों के 27 पीठासीन अधिकारिओं और विधानसभाओं के 20 सचिवों ने भाग लिया । आंध्र प्रदेश, बिहार और कर्नाटक राज्यों का प्रतिनिधित्व दोनों सदनों यानी विधान सभा और परिषद द्वारा किया गया ।
आज, अर्थात 19 दिसंबर 2019 को, समापन समारोह में प्रतिनिधियों को संबोधित करते हुए, उत्तराखंड की राज्यपाल, श्रीमती बेबी रानी मौर्य ने कहा कि विधानमंडलों ने हमारे संघीय ढांचे को मजबूत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है । उन्होने इस बात का उल्लेख किया कि पीठासीन अधिकारी सभा के नियमों, शक्तियों और विशेषाधिकारों के संरक्षक हैं और इस तरह संसदीय लोकतन्त्र में उनकी भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है । श्रीमती मौर्य ने कहा कि सभा के प्रमुख होने के नाते संसदीय परम्पराओं का संरक्षण और संवर्धन करना उनका कर्तव्य है । उन्होने यह बात याद दिलाई कि लोग अपने प्रतिनिधित्व की ज़िम्मेदारी अपने निर्वाचित राजनीतिक नेताओं को सौंपते हैं । इसलिए यदि सभा का समय शोरशराबे और व्यवधान के कारण बर्बाद होता है, तो यह जनादेश के साथ धोखा होगा।
श्रीमती मौर्य ने यह भी कहा कि दल परिवर्तन को विनियमित करने वाले कानून से संबंधित संविधान की दसवीं अनुसूची के अंतर्गत पीठासीन अधिकारी उस न्यायाधीश के समान कार्य करते है जिसे पक्षपात किए बिना निष्पक्ष रूप से अपना निर्णय देना होता है । श्रीमती मौर्य ने विधानमंडलों में प्रौद्योगिकी के उपयोग की आवश्यकता पर भी ज़ोर दिया क्योंकि इससे हमारे पर्यावरण की रक्षा होगी ।
लोक सभा अध्यक्ष, श्री ओम बिरला ने अपने समापन भाषण में कहा कि सम्मेलन में हुए गहन एवं रचनात्मक विचार-विमर्श से पीठासीन अधिकारीयों को लोकतंत्र के समक्ष उपस्थित चुनौतियों का सामना करने, संसदीय और विधायी काम-काज को बेहतर बनाने में मदद मिलेगी। पहले एजेंडा आइटम, अर्थात 'शून्य काल सहित सभा में उपलब्ध साधनों के माध्यम से संसदीय लोकतन्त्र को सुदृढ़ बनाना और क्षमता निर्माण' पर चर्चा का उल्लेख करते हुए श्री बिरला ने बताया कि इस बात पर सहमति हुई कि सभी सदस्यों को शून्य काल में अविलम्बनीय लोक महत्व की बात को रखने का अवसर अधिकाधिक मिले ताकि विधायिका के प्रति कार्यपालिका की जवाबदेही को पूरी तरह से सुनिश्चित किया जा सके । दूसरे विषय - ''संविधान की दसवीं अनुसूची और अध्यक्ष की भूमिका” पर उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि इस विषय पर चर्चा इसलिए हुई क्योंकि दल परिवर्तन की समस्या के कारण लोकतांत्रिक संस्थाओं के प्रति जनता के विश्वास में कमी आई है और इसके कारण चुनाव प्रणाली के तहत बार-बार अनावश्यक चुनाव कराने पड़ रहे है जिससे अनिवार्य रूप से सरकारी खजाने पर भारी बोझ पड़ता है।
श्री बिरला ने कहा कि पीठासीन अधिकारियों ने सदस्यों के सभा की कार्यवाही में बार-बार व्यवधान करने एवं गर्भगृह में आ जाने पर चिंता जताई और इस विषय में आम सहमति की जरुरत पर जोर दिया ताकि विधायी निकायों का काम-काज सुचारू रूप से चले। श्री बिरला ने बताया कि इस बात पर भी चर्चा हुई कि क्यों न सभी विधायी निकायों में विधायी साधनों जैसे नियम 377, नियम 193, ध्यानाकर्षण प्रस्ताव, आधे घंटे की चर्चा, नियम 184 इत्यादि को एक समान कर दिया जाए। विधायकों के क्षमता निर्माण की कार्य योजना और लोक सभा द्वारा इस विषय में विशेष प्रयास करने सम्बन्धी चर्चा भी हुई और साथ ही एक और सुझाव इस सम्मेलन में आया कि उत्कृष्ट सांसद पुरस्कार की तर्ज पर एक वार्षिक उत्कृष्ट विधायक पुरस्कार स्थापित किया जाये । श्री बिरला ने बताया कि पीठासीन अधिकारियों की दिल्ली में हुई बैठक के दौरान 28 अगस्त 2019 को तीन समितियों का गठन किया गया था। उन्होंने विश्वाश व्यक्त किया कि लखनऊ में होने वाली बैठक से पहले राष्ट्रमंडल संसदीय संघ के सम्मेलन में इन समितियों की सिफारिशें प्रस्तुत करने के प्रयास किए जाएंगे। यह बात भी हुई कि राज्य विधानमंडलों की बैठकों की संख्या में वृद्धि हो और मीडिया को सदन में हुई सार्थक चर्चा को महत्व देते हुए कवर करना चाहिए।
उत्तराखंड विधान सभा के अध्यक्ष, श्री प्रेम चंद अग्रवाल ने अपने सम्बोधन में कहा कि इस सम्मेलन के महत्व को इस बात से समझा जा सकता है कि पिछले दो दिनों में हुई चर्चा में पीठासीन अधिकारियों द्वारा किया गया सार्थक योगदान बहुत ज्ञानवर्धक रहा है और यह संसदीय पद्धतियों और प्रक्रियाओं में महत्वपूर्ण सिद्ध होगा । उन्होने लोक सभा अध्यक्ष, श्री ओम बिरला; राज्य सभा के उप सभापति, श्री हरिवश; तथा राज्य विधानमंडलों के पीठासीन अधिकारियों को सम्मेलन के सुचारु संचालन में उनके सहयोग और मार्गदर्शन के लिए धन्यवाद दिया । श्री अग्रवाल ने लोक सभा सचिवालय, राज्य सभा सचिवालय, उत्तराखंड विधान सभा सचिवालय, संबंधित एजेंसियों के अधिकारियों और मीडियाकर्मियों को भी इस सम्मेलन को सफल बनाने के लिए किए गए अथक प्रयासों के लिए धन्यवाद दिया ।
यह उल्लेखनीय है कि लोकसभा अध्यक्ष श्री ओम बिरला ने 18 दिसंबर 2019 को सम्मेलन का उद्घाटन किया था। उनके अलावा उत्तराखंड विधानसभा के अध्यक्ष श्री प्रेम चंद अग्रवाल, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री श्री त्रिवेंद्र सिंह रावत; और उत्तराखंड विधानसभा के उपाध्यक्ष श्री रघुनाथ सिंह चौहान ने कल उद्घाटन समारोह के दौरान प्रतिष्ठित सभा को संबोधित किया।
18 दिसंबर 2019 को ही सम्मेलन ने अपने पहले एजेंडा आइटम, अर्थात 'शून्य काल सहित घरेलू उपकरणों के माध्यम से संसदीय लोकतंत्र और क्षमता निर्माण को मजबूत करना' पर चर्चा प्रारम्भ की। लोकसभा अध्यक्ष श्री ओम बिरला; उत्तराखंड विधान सभा अध्यक्ष, श्री प्रेम चंद अग्रवाल और राज्यसभा के उप सभापति श्री हरिवंश ने इस सत्र की अध्यक्षता की। चर्चा की शुरुआत करते हुए राज्यसभा के उपसभापति श्री हरिवंश ने कहा कि' संसदीय व्यवधान सूचकांक 'को एक उपाय के रूप में विकसित किया जा सकता है। इससे अनुशासनहीनता की घटनाओं को रोकने में मदद मिल सकती है और सदन के समक्ष मुद्दों पर बहस और चर्चा के लिए अधिक समय की उपलब्धता होगी। राज्य सभा के उपाध्यक्ष सहित कुल 11 वक्ताओं ने अपने विचार साझा किए और बहुमूल्य सुझाव दिए।
आज सम्मेलन में कार्यसूची के दूसरे विषय अर्थात संविधान की दसवीं अनुसूची और अध्यक्ष की भूमिका पर चर्चा की गई । लोकसभा अध्यक्ष श्री ओम बिरला ने इस सत्र की अध्यक्षता की । कुल 11 वक्ताओं ने अपने विचार साझा किए और बहुमूल्य सुझाव दिए।
पीठासीन अधिकारी सम्मेलन के साथ ही विधान सभा / परिषदों के कामकाज से संबंधित मुद्दों पर चर्चा करने के लिए विभिन्न विधान मंडलों के सचिवों ने 17 दिसंबर 2019 को बैठक की। सम्मेलन के दौरान, उत्तराखंड की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को डेलीगेट्स के लिए प्रदर्शित किया गया, जिसे बहुत पसंद भी किया गया।
पीठासीन अधिकारियों को संसदीय संस्थानों में स्वस्थ परंपराओं को विकसित करने और संरक्षित करने में मदद करने के लिए, 1921 में विधायी निकायों के पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन का मंच शुरू किया गया था। 98 वर्षों के अपने इतिहास में, यह पहली बार है कि यह सम्मेलन देहरादून में आयोजित किया गया । 2021 में इस सम्मेलन के 100 वर्ष पूरे होंगे और इस अवसर पर एक विशेष सत्र के आयोजन का सुझाव है।